दिल्ली : दशकों से देश भर में वृक्ष प्रेमियों और पर्यावरणविदों की ओर से विलायती कीकर (Prosopis juliflora) के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि ये किसी अन्य प्रजाति को पनपने नहीं देता है. दिल्ली सरकार ने हाल ही में इस गैर-स्वदेशी वृक्ष को सेंट्रल रिज से हटाने की मंजूरी दी है. इस उम्मीद के साथ कि क्षेत्र की मूल वनस्पति जिसे शहर के फेफड़ों के रूप में जाना जाता है, के साथ ही जीवों को भी पुनःस्थापित किया जा सके. लंबी रस्साकशी के बाद अंतत: सेंट्रल रिज से विलायती कीकर को हटाने काम शुरू हो गया है. पर्यावरणविद प्रो. सी आर बाबू के सुझाव पर इसे उसी तकनीक से काटा जा रहा है, जिससे कि वह दोबारा से न पनप सके. कीकर के अवशेषों से वर्मी कंपोस्ट (खाद) बनाए जाने की भी तैयारी है.
विलायती कीकर से पारिस्थितिकी खतरा
1. यह शुष्क परिस्थितियों में तेज़ी से वृद्धि करता है, किसी भी पौधे को बढ़ने नहीं देता है और जहाँ यह होता है वहाँ भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे चला जाता है.
2. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु में कई वैज्ञानिकों और कार्यकर्त्ताओं द्वारा इससे उत्पन्न पारिस्थितिकी खतरे संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत किये गए हैं.
3. तमिलनाडु में इसे करुवेलम (karuvelam) कहा जाता है और इसकी लकड़ी को जलावन के रूप में उपयोग किया जाता है.
4. 2016 में मद्रास उच्च न्यायालय ने इन पेड़ों को हटाने के अंतरिम आदेश पारित किये क्योंकि पहले से ही पानी के लिये संघर्ष कर रहे क्षेत्रों में यह वृक्ष भूमिगत जल के स्तर को और कम कर रहा था.
5. 2017 में न्यायालय ने कीकर को हटाने की निगरानी स्वयं शुरू की.
6. दिल्ली में इस वृक्ष को हटाने का अभियान 1990 के दशक में शुरू हुआ जिसके तहत अदालत के मामलों, सरकार के प्रतिनिधियों और शोध-पत्रों के साथ इसके विरोध की ज़मीन तैयार हुई.
7. हालाँकि, वजीराबाद में यमुना जैव विविधता पार्क का रूपांतरण वन विभाग को विश्वास दिलाता है कि योजना काम कर सकती है.
8. 1930 की शुरुआत में अंग्रेज़ों द्वारा इस वृक्ष को दिल्ली में लगाया गया था.
9. दशक के अंत तक यह पूरी तरह से सेंट्रल रिज पर फैल गया था और इसने देशी बबूल, ढाक, कदंब, अमलतास, जंगली गुलमोहर इत्यादि को नष्ट करना शुरू कर दिया.
10. पेड़ों के साथ-साथ जीव-जंतु, जैसे- पक्षियाँ, तितलियाँ, तेंदुए, साही (porcupine) और गीदड़ गायब हो गए.
द भारत ख़बर