दिल्ली से केंद्र के "क्रांतितीर्थ" कार्यक्रम का शुभारम्भ, तात्या टोपे के वंशज ने लिया समारोह में हिस्सा


 

दिल्ली : देश की जनता को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े गुमनाम नायकों, संगठनों और अहम जगहों की जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार ने ‘क्रांतितीर्थ‘ नामक कार्यक्रमों की श्रृंखला का आगाज किया है। ‘क्रांतितीर्थ‘ श्रृंखला के पहले कार्यक्रम का आयोजन मंगलवार को राजधानी दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सभागार में किया गया। केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय और जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित प्रथम ‘क्रांतितीर्थ‘ कार्यक्रम सेंटर ऑफ एडवांस रिसर्च ऑन डेवलपमेंट एंड चेंज (सी.ए.आर.डी.सी.) के माध्यम से संपन्न हुआ। ‘क्रांतितीर्थ‘ सीरीज़ का आयोजन देश के अलग-अलग हिस्सों में आजादी के अमृत महोत्सव मनाए जाने के परीपेक्ष में किया जा रहा है।



दिल्ली में आयोजित ‘क्रांतितीर्थ‘ कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ। ‘क्रांतितीर्थ‘ श्रृंखला के विषय में जानकारी देते हुए जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आषुतोश भटनागर ने बताया कि ‘क्रांतितीर्थ‘ श्रृंखला के तहत आगामी 15 अगस्त तक देश भर में दस हजार से अधिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। यह श्रृंखला अल्पज्ञात या गुमनाम क्रांतिवीरों की जानकारी देश की जनता के सामने लाएगी।



जवाहरलाल नेहरू विष्वविद्यालय में आयोजित ‘क्रांतितीर्थ‘ कार्यक्रम में पधारे विशेष अतिथि डॉ. राजेश टोपे ने स्वाधीनता की लड़ाई से संबंधित कई पहलुओं को सामने रखा। महान स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के वंषज डॉ. टोपे ने कमल-रोटी की गोपनीय उस योजना का खुलासा किया, जो अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ाई का आधार बनी थी। उन्होंने खुलासा किया कि 1857 से कई माह पहले लालकमल को जहां भारतीय सैनिकों को एकजुट करने का आधार बनाया गया, वहीं रोटी के माध्यम से विद्रोह करने वाले सैनिकों के लिए जनाधार तैयार किया गया। तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई सीताराम बाबा, बैजाबाई शिंदे , जयाजी राणा जैसे अनेक नामों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ‘क्रांतितीर्थ‘ श्रृंखला के माध्यम से ऐसे सैकड़ों गुमनाम नायकों के स्वाधीनता के लिए किए गए कार्यों को सामने लाने की आवष्यकता हैं।



कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले अन्य विशेष अतिथि धर्मसिंह श्रीचावला के पिता त्रिलोचन सिंह चावला आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाश चंद्र बोस से मिलने वाले अंतिम नायक थे। अंतिम मुलाकात के दौरान सुभाष जी ने उन्हें अपनी दो पिस्टल देकर राजधानी में मिलने के लिए रहा था पर ऐसा नहीं हुआ। अपने पिता से जुड़े अनुभवों को साझा करते हुए धर्मसिंह श्रीचावला ने नेताजी सुभाशचंद्र बोस थी। 1943 में थाईलैंड और बैंकाक यात्रा से जुड़े अनुभवों एवं तत्कालीन समय के छायाचित्रों को सामने रखा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और आई.सी.एच.आर. के अध्यक्ष प्रो. आर. तंवर ने कहा कि स्वाधीनता के वास्तविक इतिहास को छिपाया गया। जबकि वास्तविकता तो यह है कि 1760 से लेकर 1947 के मध्य 150 से अधिक आंदोलन हुए जिसे दबाने के लिए 12 हजार से अधिक लोगों को फांसी दे दी गई। अंग्रेजों के काल में सुविधाजनक जेल एवं यंत्रणा देने वाली जेलों की चर्चा करते हुए उन्होंने प्रष्न किया कि आखिर क्यों वीर सावरकर को सेल्यूलर जेल भेजा गया, जबकि कई अन्य सुविधाजनक जेल में आराम करते रहे? उन्होंने कहा कि भारत की स्वाधीनता की लड़ाई मात्र राजनीतिक लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह भारत की संस्कृति परंपरा एवं प्राचीन विरासत को बचाने की लड़ाई थी। उन्होंने कहा कि ‘क्रांतितीर्थ‘ श्रृंखला के माध्यम से वह सत्य सामने आएगा जिसे जानबूझकर दबाया गया।

कार्यक्रम में आर्गनाइजर समाचार पत्र के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने भी प्रष्न उठाया कि अंगीकर स्वतंत्रता की लड़ाई को सिर्फ राजनीतिक दृश्टि से देखा जाता है, जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं है। प्रष्न यह भी है कि अंगीकर भारत का असली इतिहास कहां है? वास्तव में यह भारत के स्वधर्म-स्वदेषी को बचाने की लड़ाई थी। लेकिन इतिहास में अनेकों तथ्यों को सामने नहीं रखा गया। लेकिन ‘क्रांतितीर्थ‘ श्रृंखला देष के वास्तविक इतिहास को सामने लाएगी। कार्यक्रम के अंत में प्रो. एस.सी. गरकोटी ने सी.ए.आर.डी.सी. को कार्यक्रम आयोजन के लिए बधाई दी। जबकि शिव पूजन पाठक ने कार्यक्रम में अतिथियों और सभागार में मौजूद सभी लोगों का आभार जताया।

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