Agra, UP News: क्रांति तीर्थ श्रंखला ने आजादी के अधूरे और अप्रामाणिक दस्तावेजों के कारण गुमनाम हुए क्रांतिकारियों को किया उजागर



  • संसार के हर क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर हों तब आजादी का अमृत महोत्सव होगा सार्थक: चम्पत राय
  • क्रांति तीर्थ श्रंखला के समापन पर सूरसदन में आगरा के गुमनाम और अल्प ज्ञात 42 क्रांतिकारियों का किया गया भावपूर्ण स्मरण 
  • संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के निर्देशन में सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च ऑन डेवलपमेंट एंड चेंज और संस्कार भारती ने मिलकर किया क्रांतिकारियों के परिवारीजनों का अभिनंदन
  • औपनिवेशिक और विदेशी ताकतों को हर बार भारत के बहादुर देशभक्तों ने खदेड़ा: आशुतोष भटनागर


आगरा: आठवीं शताब्दी से आजादी का संघर्ष निरंतर चल रहा है। युद्ध के प्रकार निरंतर बदल रहे हैं। देश को पराधीन करने की कोशिश जारी है। अमेरिका, चीन और रूस क्यों चाहेंगे कि हम विकसित देश बनें। ये आज की तरुणाई को सोचना है कि अगर हम आर्थिक रुप से पराधीन हुए तो राजनीतिक रूप से भी पराधीन हो जाएंगे



ये उद्गार संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देशन में सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च ऑन डेवलपमेंट एंड चेंज (सीएआरडीसी) एवं संस्कार  भारती द्वारा आयोजित क्रांति तीर्थ श्रृंखला के समापन पर गुरुवार शाम सूरसदन में राम जन्मभूमि न्यास के महामंत्री चंपत राय ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि आजादी का यह अमृत महोत्सव तभी सार्थक होगा जब हम संसार के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेंगे। जब सभी देश की भलाई के लिए काम करने का संकल्प लेंगे।

इससे पूर्व जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निर्देशक आशुतोष भटनागर ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि 1000 वर्ष के संघर्ष में एक भी दिन ऐसा नहीं, जब भारत पूरी तरह गुलाम रहा हो। स्वाधीनता के संघर्ष में युवाओं, महिलाओं, लोक कलाकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों समेत सबने अपनी अपनी भूमिका अदा की। 1857 में मेरठ और दिल्ली ही नहीं, आगरा भी लड़ा। 

 उन्होंने कहा कि हमें स्वाधीनता तो मिल गई लेकिन अभी स्वतंत्रता बाकी है। तंत्र आज भी हमारा नहीं बना है। आज भी हम उसी तरह पुलिस से डरते हैं, जैसे अंग्रेजों से डरते थे। वर्ष 2047 में आजादी की शताब्दी मनाते हुए हम सब पूर्ण स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनें। हम उन बलिदानियों के सपनों को लेकर जिएं और उन्हें साकार करें।

 उन्होंने कहा कि भारत जीतने या भारत पर कब्जा करने का सपना लेकर आने वाले पुर्तगाली हों, फ्रेंच हों, डच हों या अंग्रेज, सभी औपनिवेशिक और विदेशी ताकतों को हर बार भारत के बहादुर देशभक्तों और क्रांतिकारियों ने बुरी तरह खदेड़ा लेकिन अंग्रेजी लेखकों ने भारतीय वीरता और साहस को सामने नहीं आने दिया बल्कि उन्होंने 1857 के पूरे आंदोलन को भी मुट्ठी भर लोगों की कल्पना बताया और इसको एक सैनिक विद्रोह तक सीमित करने की बात कही। इसके लिए उन्होंने फर्जी दस्तावेज बनाए। दुर्भाग्य यह हुआ कि स्वतंत्रता के बाद जिन लोगों ने आजादी का इतिहास लिखा, उन्होंने भी उन्हीं अधूरे और अप्रामाणिक दस्तावेजों को सत्य मान लिया। परिणाम यह हुआ कि औपनिवेशिक ताकतों से भारत की आजादी के सही तथ्य कभी सामने नहीं आ सके। आजादी के सैकड़ों क्रांतिकारी गुमनाम ही रह गए। 

श्री भटनागर ने स्पष्ट किया कि क्रांति तीर्थ श्रृंखला के माध्यम से स्वाधीनता के इन्हीं गुमनाम नायकों को प्रकाश में लाने और इनकी गौरव गाथा नई पीढ़ी तक पहुँचाने का महती कार्य किया गया है। 

इससे पूर्व श्री राम जन्म भूमि न्यास के महामंत्री चंपत राय, महापौर श्रीमती हेमलता दिवाकर, क्रांतिवीर तात्या टोपे के परिजन डॉ. राजेश टोपे, समारोह अध्यक्ष राजेश अग्रवाल (प्राचीन पेठा),  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक हरीश रौतेला, संस्कार भारती के अखिल भारतीय संरक्षक बाँकेलाल गौड़,  और आशुतोष भटनागर ने संयुक्त रूप से भारत माता और शहीदों की जन्मभूमि की मिट्टी से भरे कलश का पूजन करके और दीप जलाकर क्रांतिकारी परिवार सम्मान समारोह का विधिवत शुभारंभ किया।



सीएआरडीसी की ओर से डॉ. शुचि यादव, डॉ. अमृता शिल्पी, अमिताभ ठाकुर और प्रदीप डबराल तथा संस्कार भारती के आलोक आर्य, नितेश अग्रवाल सर्राफ, दीपक गोयल, यतेंद्र सोलंकी, अर्पित चित्रांश और प्रखर अवस्थी ने व्यवस्थाएं संभालीं। समारोह का संचालन राज बहादुर सिंह राज ने किया।

गांव गांव जाकर खोजे क्रांतिकारी

क्रांति तीर्थ श्रंखला के मंडल समन्वयक राज बहादुर सिंह राज ने समारोह की भूमिका रखते हुए बताया कि विगत 15 अप्रैल से 27 जून तक आगरा जनपद के बाह, किरावली, जगनेर, फतेहपुर सीकरी और एत्मादपुर क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों में लगातार प्रवास, संपर्क और संवाद करके 42 गुमनाम क्रांतिकारियों को खोजा गया। इनमें से भी केवल 36 क्रांतिकारियों के ही परिवारी जन मिल सके। 

इस महत्वपूर्ण कार्य में उनके साथ आलोक आर्य, आदर्श नंदन गुप्त, डॉ. रामवीर शर्मा रवि, यतेंद्र सोलंकी, नरेंद्र पाठक, वीरेंद्र कुमार यादव, प्रखर अवस्थी और अर्पित चित्रांश की भी सराहनीय भूमिका रही।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जगाई देशभक्ति

सम्मान समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रमों द्वारा देशभक्ति का जागरण किया गया। श्रीमती प्रतिभा तलेगांवकर के निर्देशन में उनके साथी कलाकारों द्वारा समूह गान करते हुए राष्ट्र वंदना ने भाव विभोर कर दिया। वहीं श्रीमती रुचि शर्मा और प्रोफेसर नीलू शर्मा के निर्देशन में विभिन्न कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नृत्य नाटिका 'शहीदों को नमन' ने वीर बलिदानियों के प्रति श्रद्धा का संचार किया। समारोह के शुरू में राष्ट्रगान और समापन पर वंदे मातरम गाया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार राज बहादुर सिंह राज और आदर्श नंदन गुप्त के संपादन में सीएआरडीसी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित क्रांति तीर्थ स्मारिका का विमोचन भी गणमान्य अतिथियों द्वारा किया गया।

इनका किया विशेष रूप से अभिनंदन

क्रांतिकारी परिवार सम्मान समारोह में मई-बटेश्वर के रहने वाले काकोरी कांड के योजनाकार और राम प्रसाद बिस्मिल के गुरु पंडित गेंदा लाल दीक्षित, मद्रास में क्रांति की ज्योत जगाने वाले कचौरा घाट-बाह निवासी शंभू नाथ आजाद, फतेहपुर सीकरी के सुचेता गांव को क्रांतिकारियों का अड्डा बनाने वाले भगवंते बाबा, शीतला गली में बम बनाने वाले फतेहाबाद निवासी राजेंद्र प्रसाद दौनेरिया, सरदार भगत सिंह के बेहद निकट रहे नूरी दरवाजा निवासी लेफ्टिनेंट शाह रोशन लाल सूतैल, किरावली निवासी आनंदू बाबा (बंड) और बालमुकुंद बल्ला के परिवारी जनों का शॉल, साफा, माला और प्रशस्ति पत्र द्वारा विशेष रूप से अभिनंदन किया गया। साथ ही, भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले आगरा जनपद के 42 क्रांतिकारियों का भी भावपूर्ण स्मरण किया गया।

सम्मानित होने वाले क्रांतिकारियों के परिजनों में क्रमशः पवन दीक्षित, किशन जी, हरीश खंडेलवाल, अरविंद दौनेरिया, बृजेश सूतैल, गोपाल सिंह इंदौलिया और रमन बल्ला शामिल रहे।






              

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