Delhi-NCR: दिल्ली से सटे इस गांव में सदियों से नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन, मोहम्मद गोरी से क्या है इस गांव का नाता, जानें पूरा किस्सा


Delhi: दिल्ली के नज़दीक इस गांव में भाई और बहन के सबसे पवित्र त्योहार रक्षाबंधन को काला दिवस के रूप में मनाया जाता है। जी हां दिल्ली से सटे सुराना गांव में में मोहम्मद गोरी के आतंक की अभी तक निशानियां देखने को मिलती हैं। 

देश की राजधानी दिल्ली से 30 किलोमीटर की दूर एक गांव में सदियों से रक्षाबंधन नहीं मनाया गया । अगर किसी ने रक्षाबंधन का त्योहार मनाया तो उसके साथ अनहोनी हो जाती है. 12 वीं सदी में मोहम्मद गोरी ने रक्षाबंधन के दिन इस गांव में कत्लेआम मचाया था. इसी वजह से इस गांव के लोग रक्षाबंधन को काला दिवस के रूप में मनाते हैं.


दिल्ली से लगभग 30 किलोमीटर दूर एक गांव है जिसका नाम है सुराना। सुराना गांव के लोग 11 सदी बीत जाने के बाद भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मानते हैं. त्योहार को पूरा का पूरा गांव कल दिवस के रूप में मनाता है. गांव वालों से बात करने पर ये कहानी पता चली कि 12वीं सदी में दिल्ली में धोखे से लुटेरे मोहम्मद गोरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया था. जिसके बाद दिल्ली में गोरी की सेना ने कत्लेआम शुरू कर दिया था.

जिसमें पृथ्वीराज के सामंतों ने दिल्ली के आसपास यमुना और हिंद नदी के किनारों पर अपने गांव बसा लिए थे. मोहम्मद गोरी से टक्कर लेने के लिए वह आगे की योजना बना रहे थे, तभी किसी देशद्रोही ने उनके यहां छिपे होने की सूचना मोहम्मद गोरी को दे दी. इसके बाद मोहम्मद गोरी की सेना ने आकर सोनगढ गांव जो आज सुराना गांव के नाम से जाना जाता है में बने खेड़ा स्थल पर गांव के महिला, पुरुष,बच्चे और बुजुर्गों को हाथी के पैरों तले कुचलवाकर मौत के घाट उतार दिया था. बस तभी से इस गांव में रक्षाबंधन को कल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

सुराना यानी कि सोनगढ गांव के लोगों से करने पर गांव की एक महिला ने जानकारी दी कि बहुत समय पहले इस गांव में एक गाय ने बछड़े को रक्षाबंधन के दिन जन्म दिया था, कहा जाता है कि बछड़े के जन्म के साथ ही सभी बुराइयां खत्म हो जाती हैं. रुके हुए तीज त्योहार शुरू किए जा सकते हैं. ऐसा ही प्रयास उस परिवार ने भी किया. जिस घर में गाय ने बछड़ा दिया था. उस परिवार ने रक्षाबंधन के त्योहार को मनाया. अगले ही दिन उसका बछड़ा बीमार हो गया और उसके बाद परिवार वाले भी बीमार होकर मौत के मुंह में समाने लगे. बस तभी से किसी ने भी दोबारा रक्षाबंधन मनाने की कोशिश नहीं की.

रक्षाबंधन का काला साया आज भी इस गांव पर मंडराता रहता है, जिसके डर से युवा पीढ़ी भी रक्षाबंधन के त्योहार को नहीं मना रही है. गांव के युवा और पढ़े-लिखे बच्चों का कहना है जब से मोहम्मद गोरी ने 12 वीं सदी में गाजियाबाद के इस गांव में रह रहे 20,000 लोगों को हाथियों के पैरों तले कुचलवाकर मौत के घाट उतार दिया था, तब से रक्षाबंधन के त्योहार को पूरा गांव कल दिवस के रूप में मनाता है.

वैसे तो सारा गांव रक्षाबंधन को कल दिवस के रूप में सदियों से मनाते चला आ रहा है, लेकिन इस दिन गांव के बड़े बुजुर्ग जाकर उस खेड़ा स्थान पर, जहां मोहम्मद गोरी के हाथियों ने गांव के लोगों को पैरों तले कुचल कर मौत के घाट उतरा था. वहां उनके लिए श्रद्धांजलि सभा और पूजा करने के बाद घर लौट आते हैं और घर आकर पूरे गांव में बसे परिवार रक्षाबंधन के दिन को काले दिवस के रूप मैं मानते हैं.


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