डलहौजी : यहां मां काली को कहा जाता है पहलवानों की देवी, डैणकुंड की इस खूबसूरत पहाड़ी पर किया था राक्षसों का संहार

pohlani mata mandir dalhousie


 डलहौज़ी : हिमाचल के चंबा जिले के डलहौजी में मां काली का रूप पोहलाणी स्थापित है। मां पोहलाणी को पहलवानों की देवी कहा जाता है। मान्यता है कि हजारों वर्ष पहले इस डैनकुंड की पहाड़ी से जो भी आता था, यहां रहने वाले राक्षस उन्हें खा जाते थे। जब अत्याचार बढ़ गए तो डैनकुंड की एक चट्टान से मां काली कन्या रूप में प्रकट हुईं। माता ने पहलवान के रूप में उन राक्षसों और डायनों का संहार किया। तब से इस मंदिर का नाम पोहलवानी फिर पोहलाणी पड़ा।


पौराणिक कथाओं में पोहलाणी का वर्णन


डलहौजी में डैनकुंड की खुबसूरत वादियों में बसा पोहलाणी माता का मंदिर यहां के लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। पौराणिक कथाओं के अनुसार लोगों पर हो रहे अत्याचार को देखकर माता महाकाली से रहा नहीं गया और वह डैनकुंड की इन्हीं पहाड़ियों पर एक बड़े से पत्थर से बाहर प्रकट हुइं। पत्थर के फटने की आवाज दूर-दूर तक लोगों को सुनाई दी, कन्या रूपी माता के हाथ में त्रिशूल था और यहीं पर माता ने राक्षसों से एक पहलवान की तरह लड़ कर उनका वध किया। तभी से यहां पर माता को पोहलाणी माता के नाम से पुकारा जाने लगा। 



डलहौजी से 12 किलोमीटर की दूरी


यह पर्यटन स्थल जिला चंबा के डलहौजी से 12 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर माता काली जी को समर्पित है। यहां से चारों ओर का नजारा दिखाई देता है। मंदिर से काफी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि हजारों वर्ष पहले इस डैनकुंड की पहाड़ी के उस मार्ग से कोई भी नहीं आ-जा सकता था, क्योंकि इस पहाड़ी पर राक्षसों का वास था। माता काली जी ने पहलवान के रूप में आकर उन राक्षसों का संहार किया, तब से इस मंदिर का नाम पोहलानी पड़ा। यहां हर साल माता को समर्पित छिंज मेला होता है, जिसमें नामी पहलवान अपने दांव खेलते हैं।




रखेड़ गांव की कुलमाता


पोहलाणी माता रखेड़ गांव के वाशिंदों की कुल माता है। इसके नजदीक खूबसूरत रखेड़ गांव पड़ता है, जो काहरी पंचायत के अंदर आता है। यहीं के लोगों की कमेटी मंदिर की देखरेख करती है।




किसान के सपने में आई थी माता


होवार के एक किसान को माता ने सपने में आकर, यहां पर मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया और माता के आदेशानुसार ही यहां पर मंदिर की स्थापना की गई। नवरात्रों में कुछ लोग अपनी मन्नतों को लेकर माता के दरबार में आते हैं और अपनी मन्नतों के पूरा होने पर माता का धन्यवाद करने के लिए मंदिर में हाजरी लगाते हैं। कहते हैं कि डैनकुंड नाम की इस जगह पर डायनें रहती थी यंहा पर आज भी कुंड हैं। लोगों का मानना है कि अमावस्या पर यहां आज भी डायनें आती हैं। मां यहां के लोगों की रक्षा करती हैं और उनकी मन्नतें पूरी करती हैं।


द भारत खबर डॉट कॉम

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