
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग में रजिस्ट्रार व शिक्षा सचिव रखेंगे अपना पक्ष
Delhi Blast Update, (द भारत ख़बर), नई दिल्ली/फरीदाबाद: दिल्ली ब्लास्ट के तार फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ने के बाद जांच एजेंसियों ने यूनिवर्सिटी पर शिकंजा कसा हुआ है। इसी कड़ी में आज राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग में यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक दर्जा) को लेकर सुनवाई होगी। इससे पहले आयोग की ओर से 24 नवंबर को यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी किया था।
नोटिस में पूछा गया है कि जब उसके डॉक्टरों की दिल्ली में 10 नवंबर को हुए विस्फोट में भूमिका को लेकर जांच चल रही है, जिसमें 15 लोग मारे गए थे, तो ऐसे में उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों न रद्द कर दिया जाए। आयोग ने यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार और हरियाणा शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को आज की सुनवाई में उपस्थित होने का निर्देश दिया है। आपको बता दें कि यूनिवर्सिटी की शुरूआत 20 एकड़ से हुई थी और आज यह 78 एकड़ में फैली हुई है।
क्या है होता है माइनॉरिटी कोटा
माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक कोटा) वह आरक्षण है जो किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक समूह के सदस्यों को शिक्षा और रोजगार के अवसरों में लाभ पहुंचाने के लिए दिया जाता है। भारत में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों को अल्पसंख्यक माना जाता है और उनके लिए अलग से कोटे का प्रावधान है। अल-फलाह यूनिवर्सिटी में मुस्लिमों को माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक कोटा) मिला हुआ है।
आयोग ने मांगे ये दस्तावेज
आयोग ने यूनिवर्सिटी संचालित करने वाले ट्रस्ट, उसके कर्मचारियों और प्रशासकों की नियुक्ति प्रक्रिया के साक्ष्य सहित अन्य जरूरी दस्तावेज मांगे हैं। इसके अलावा आयोग ने नोटिस में ट्रस्ट डीड के मूल दस्तावेज, प्रवेश और स्टाफ भर्ती संबंधी आंकड़े, यूनिवर्सिटी के अंदर प्रशासकों की हुई बैठकों के विवरण और तीन वर्र्षों के दौरान बैंक खातों से हुए लेन देन की जानकारी मांगी गई है। अगर यूनिवर्सिटी ने मांगे गए व्यापक दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराएं, तो कड़ी कार्रवाई की संभावना है।
सात साल में 415 करोड़ की हुई कमाई
अभी तक की जांच में पता चला है कि यूनिवर्सिटी को सात साल में 415 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। यूनिवर्सिटी से जुड़ी 9 शेल कंपनियां भी मिली हैं। एक ही पैन नंबर से सारे लेनदेन का खेल हो रहा था। ईडी और अन्य जांच एजेंसियों के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ट्रस्ट मुख्य रूप से कॉलेज और यूनिवर्सिटी चलाता है।
ऐसे में छात्रों मिली फीस ही इसकी मुख्य आय का स्रोत है। हालांकि कई सालों तक संस्थान बिना मान्यता के चलते रहा। फिर छात्रों से पूरी फीस वसूली गई, जिसे एजेंसियां धोखाधड़ी और जालसाजी मान रही हैं।
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