पटना : बिहार विधानसभा चुनाव बेहद अहम मोड़ पर आ गया है… RJD यानि राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी प्रसाद यादव को गठबंधन ने जब से बिहार का अगला मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है तब से बीजेपी के ख़ेमे में ज़बरदस्त उथल स्थल है…इस घोषणा ने विपक्षी दलों की एकजुटता को मजबूत करने के साथ–साथ पूरे चुनावी समर को ‘नीतीश कुमार बनाम तेजस्वी यादव‘ के रूप में बदल दिया है। बिहार की राजनीति में महागठबंधन के इस कदम ने, ना सिर्फ गठबंधन के आंतरिक समीकरणों को साफ किया है, बल्कि जनता के सामने स्पष्ट विकल्प भी पेश कर दिया है – 20 साल से ‘सुशासन‘ का प्रतीक बने नीतीश कुमार या फिर युवा ऊर्जा से लबरेज तेजस्वी यादव। आइए समझते हैं बिहार के तमाम समीकरण….
क्या तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार एक नई दिशा पाएगा ? तेजस्वी यादव, लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं, उनकी राजनीतिक यात्रा 2020 के विधानसभा चुनाव से ही चमकने लगी थी। उस चुनाव में उन्होंने लगभग अकेले ही पूरे प्रचार का दम भरा और आरजेडी को 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनाने में सफल रहे। उनकी रैलियों में उमड़ने वाली युवाओं की भीड़ ने उनकी लोकप्रियता का परिचय दिया। एनडीए की 125 सीटें आईं लेकिन महागठबंधन कुल 110 सीटें जीतकर मामूली अंतर से हार गया। तेजस्वी यादव ने साबित कर दिया कि वे सिर्फ ‘राजनीतिक वारिस‘ नहीं, बल्कि एक मजबूत नेता हैं।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी की सबसे बड़ी ताकत उनकी युवा अपील है। बिहार में बेरोजगारी दर जो 15-29 वर्ष आयु वर्ग में 20 फ़ीसदी से ज़्यादा है, ऐसी चुनौतियों के बीच वे ’10 लाख नौकरियां‘ और ‘जीविका दीदियों को 30,000 रुपये मासिक वेतन‘ जैसे वादों से नई पीढ़ी को आकर्षित कर रहे हैं। उनकी ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक‘ (पीडीए) रणनीति भी गठबंधन को मजबूत आधार दे रही है। तेजस्वी कह रहे हैं कि, हम बिहार को बदलने आए हैं, न कि सत्ता के लिए। वो एनडीए के ‘डबल इंजन‘ को भ्रष्टाचार और अपराध का इंजन बता रहे हैं। हालांकि, तेजस्वी यादव की राह आसान नहीं है। लालू राज (1990-2005) के ‘जंगल राज‘ की छाया और आईआरसीटीसी घोटाले जैसे आरोप उनकी छवि को प्रभावित करते हैं। उनकी शिक्षा (9वीं पास) और क्रिकेट करियर की असफलता पर भी बीजेपी हमलावर रही है। फिर भी, एक्स पर #TejashwiYadavCM जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जो उनकी डिजिटल पकड़ दिखाते हैं।
दूसरी ओर, जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 से बिहार को ‘सुशासन बाबू‘ के रूप में चला रहे हैं। उनकी सरकार ने ग्रामीण सड़कों का जाल (4,000 से 1.5 लाख किमी), हर घर बिजली पहुंचाने और महिलाओं के सशक्तिकरण जैसी योजनाओं से राज्य को बदला है। एनडीए (बीजेपी, जेडीयू, हम, एलजेपी–रा) ने 2020 में 125 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी थी। नीतीश की सबसे बड़ी ताकत उनका अनुभव और विकास का रिकॉर्ड है – 72% मतदाता उन्हें लालू परिवार से बेहतर मानते हैं। लेकिन 74 वर्षीय नीतीश की उम्र और स्वास्थ्य समस्याएं एनडीए के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया बयान – “चुनाव के बाद विधायक मुख्यमंत्री चुनेंगे” – ने नीतीश की स्थिति को कमजोर कर दिया है। एनडीए पर एंटी–इनकंबेंसी का दबाव है, खासकर बेरोजगारी, पलायन और महंगाई के मुद्दों पर। आम आदमी पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अकेले उतरी है। आप ने स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी कर दी है। जिसमें अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, आतिशी समेत 20 नेताओं के नाम शामिल हैं। अब तक आप बिहार में 99 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है।…. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 43 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना रही है। ऐसे में बिहार का चुनाव कितना दिलचस्प होने वाला है ये आप अंदाज़ा लगा सकते हैं…
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले आए चार प्रमुख ओपिनियन पोल के नतीजों ने राज्य की राजनीति को फिर से चर्चा में ला दिया है।मैट्रिक्स, जेवीसी, स्पीक मीडिया नेटवर्क और वोट वाइब द्वारा किए गए सर्वे में एक समान रुझान दिखा है।इन सभी सर्वेक्षणों में एनडीए गठबंधन यानी भाजपा, जेडीयू, लोजपा (रामविलास) और हम को स्पष्ट बढ़त मिलती दिखाया गया है।सर्वे के मुताबिक एनडीए को 40% से 52% वोट शेयर और 130 से 158 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है।यह नतीजे 2020 विधानसभा चुनाव के मुकाबले काफी बेहतर हैं, जब एनडीए को 125 सीटें मिली थीं।राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर ये रुझान बरकरार रहा, तो एनडीए 2010 की ऐतिहासिक जीत को दोहरा सकता है, जब उसे 39% वोट के साथ 206 सीटें मिली थीं। मैट्रिक्स ओपिनियन पोल के अनुसार, बिहार में जनता अब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को स्थिरता और सुशासन का प्रतीक मानती है।सर्वे में 76% लोगों ने कहा कि वे नीतीश कुमार के काम से संतुष्ट हैं। इनमें से 40% बहुत संतुष्ट हैं और 36% सामान्य रूप से संतुष्ट हैं।जब यह पूछा गया कि बिहार में अच्छा शासन कौन दे सकता है, तो 35% लोगों ने भाजपा और 18% ने जेडीयू का नाम लिया।इस तरह एनडीए को कुल 43% समर्थन मिला।लगभग 42% लोगों ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में फिर से देखना चाहा।अगर आज चुनाव हों, तो 52% मतदाता एनडीए को वोट देने की बात कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता अब भी मजबूत बनी हुई है। जेवीसी ओपिनियन पोल में एनडीए को 41 से 45 प्रतिशत वोट शेयर और 131 से 150 सीटें मिलने का अनुमान है।महागठबंधन जिसमें आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं, उसे 40% वोट और 81 से 103 सीटों का अनुमान दिया गया है।जन सुराज अभियान को 10 से 11% वोट और 4 से 6 सीटें मिल सकती हैं। मुख्यमंत्री की पसंद के सवाल पर 27% लोगों ने नीतीश कुमार का नाम लिया जबकि 25% ने तेजस्वी यादव को पसंद किया।यह दिखाता है कि तेजस्वी यादव युवाओं में थोड़ी पकड़ बना पाए हैं, लेकिन राज्य स्तर पर नीतीश कुमार अब भी आगे हैं। स्पीक मीडिया नेटवर्क और वोट वाइब द्वारा किए गए सर्वे में भी एनडीए की स्थिति मजबूत बताई गई है।इन सर्वेक्षणों में एनडीए को 40 से 52 प्रतिशत वोट शेयर और 130 से 158 सीटों की संभावना दिखाई गई है।महागठबंधन को 36 से 42 प्रतिशत वोट शेयर तक सीमित बताया गया है।दोनों सर्वेक्षणों में एक समान रुझान यह दिखा कि राज्य की जनता सुशासन और स्थिर सरकार चाहती है।यही कारण एनडीए के लिए सबसे बड़ी ताकत बन सकता है। सर्वेक्षणों में महागठबंधन को पूरी तरह बाहर नहीं दिखाया गया है। उसे लगभग 40% वोट शेयर मिल सकता है, जिससे वह एक मजबूत चुनौती पेश कर सकता है। सीमांचल और मधुबनी–बेगूसराय जैसे क्षेत्रों में उसका प्रभाव बना हुआ है।तेजस्वी यादव की युवा छवि और रोजगार पर केंद्रित राजनीति ने सकारात्मक असर डाला है…फिर भी, बिहार की राजनीति में अंतिम फैसला चुनाव प्रचार, प्रत्याशियों की छवि और स्थानीय मुद्दों पर निर्भर करेगा। इसलिए नवंबर 2025 के नतीजों तक ये तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं होगी।
