दिल्ली : भारत अपनी समृद्ध संस्कृति और विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर सिविक सेंस (नागरिक चेतना) की कमी चर्चा का विषय बनती है। सड़कों पर कचरा फेंकना, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना—ये कुछ उदाहरण हैं जो इस समस्या को दर्शाते हैं। लेकिन सिविक सेंस क्या है, और भारत में इसका अभाव क्यों है? आइए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
सिविक सेंस क्या है?
सिविक सेंस एक सामाजिक जागरूकता और व्यवहार है, जो व्यक्ति को अपने आसपास के समुदाय और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाता है। यह सार्वजनिक स्थानों—जैसे सड़कें, पार्क, और परिवहन—का सम्मान करने, नियमों का पालन करने, और दूसरों के अधिकारों का ध्यान रखने की भावना है। उदाहरण के लिए, कचरे को कूड़ेदान में फेंकना, ट्रैफिक सिग्नल का पालन करना, और शोर-शराबे से बचना सिविक सेंस के हिस्से हैं। यह न केवल व्यक्तिगत अनुशासन को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक समरसता और सौंदर्य को भी बढ़ाता है।
भारत में सिविक सेंस का अभाव: प्रमुख कारण
- शिक्षा और जागरूकता की कमी:
कई क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में सिविक सेंस को शामिल करने पर ध्यान नहीं दिया जाता। लोग सार्वजनिक व्यवहार के महत्व से अनजान रहते हैं, जिससे गंदगी और अव्यवस्था बढ़ती है। - जनसंख्या दबाव:
भारत की विशाल आबादी और शहरीकरण के कारण सार्वजनिक सुविधाओं पर दबाव बढ़ा है। इससे लोग व्यक्तिगत सुविधा को प्राथमिकता देते हैं, जैसे सड़क पर कचरा फेंकना या पार्किंग नियम तोड़ना। - सांस्कृतिक और सामाजिक आदतें:
कुछ सामाजिक मान्यताएँ, जैसे “यह सार्वजनिक जगह है, मेरी जिम्मेदारी नहीं,” सिविक सेंस को कमजोर करती हैं। ग्रामीण से शहरी पलायन के दौरान यह बदलाव धीमा रहा है। - प्रशासनिक लापरवाही:
सरकार और स्थानीय निकायों की ओर से सख्ती और जागरूकता अभियान की कमी भी जिम्मेदार है। जब नियमों का उल्लंघन सजा के बिना रहता है, तो लोग इसे दोहराते हैं। - आर्थिक असमानता:
गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण लोग तात्कालिक समाधानों, जैसे सड़क पर कचरा फेंकना, को अपनाते हैं, जो लंबे समय में सिविक सेंस को प्रभावित करता है।
सिविक सेंस की कमी के प्रभाव
- सड़कों पर गंदगी और प्रदूषण बढ़ना।
- ट्रैफिक जाम और दुर्घटनाओं में वृद्धि।
- सार्वजनिक संपत्ति का क्षरण, जैसे बेंच तोड़ना या दीवारों पर पेंटिंग।
- सामाजिक तनाव, क्योंकि अनुशासनहीनता से विवाद पैदा होते हैं।
समाधान और रास्ता
- शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों और समुदायों में सिविक सेंस को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। विज्ञापन और अभियान प्रभावी हो सकते हैं।
- कानूनी सख्ती: ट्रैफिक चालान, फाइन, और नियमों के उल्लंघन पर त्वरित कार्रवाई से व्यवहार में बदलाव आएगा।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय लोग स्वच्छता ड्राइव और जागरूकता कार्यक्रमों में शामिल हों, ताकि बदलाव नीचे से शुरू हो।
- सरकारी पहल: स्वच्छ भारत मिशन जैसे अभियानों को मजबूत करना और बुनियादी सुविधाएँ, जैसे कूड़ेदान, बढ़ाना जरूरी है।
निष्कर्ष
भारत में सिविक सेंस का अभाव जटिल सामाजिक, आर्थिक, और प्रशासनिक कारणों से है, लेकिन यह बदल सकता है। सिविक सेंस सिर्फ नियमों का पालन नहीं, बल्कि एक बेहतर समाज बनाने की जिम्मेदारी है। सरकार, नागरिकों, और शिक्षकों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि भारत न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि सामाजिक अनुशासन में भी आगे बढ़े।