Haryana News: पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) में हरियाणा को हिस्सा मिलेगा या नहीं, इस पर अंतिम फैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय करेगा। हरियाणा सरकार ने 28 साल बाद फिर से पंजाब विश्वविद्यालय में अपनी हिस्सेदारी की मांग की है। साल 1997 में हरियाणा ने विश्वविद्यालय में अपनी हिस्सेदारी छोड़ दी थी, जिसके बाद से पीयू में हरियाणा का कोई हिस्सा नहीं था।
अब लंबे समय बाद हरियाणा सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीनस्थ इंटर-स्टेट काउंसिल को पत्र लिखकर अपनी मांग रखी है। पंजाब विश्वविद्यालय देश का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जो संसद में पारित अंतर-राज्यीय निगमित निकाय के तहत गठित हुआ है। इसके सभी बड़े फैसलों का अधिकार केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास होता है, इसलिए हरियाणा की मांग का भी अंतिम निर्णय वहीं होगा।
अगर हरियाणा को विश्वविद्यालय में हिस्सेदारी मिलती है तो इससे वहां हरियाणा के मुख्यमंत्री, शिक्षा सचिव और अन्य अधिकारियों को सीनेट और सिंडिकेट में जगह मिलेगी। फिलहाल पंजाब विश्वविद्यालय का 83 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार के पास है और पंजाब सरकार के पास 17 फीसदी। पहले केंद्र सरकार का हिस्सा सिर्फ 20 फीसदी था, लेकिन हरियाणा के हिस्से को छोड़ने के बाद यह बढ़ गया। विश्वविद्यालय के सभी आर्थिक मामलों का निपटारा भी केंद्र सरकार ही करती है।
पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना 1882 में लाहौर में हुई थी। 1947 में देश के विभाजन के बाद यह भारत में आ गया। विभाजन के बाद पूर्वी पंजाब विधानमंडल द्वारा 1947 में इस विश्वविद्यालय का पुनः गठन किया गया। यह विश्वविद्यालय उस समय संयुक्त पंजाब क्षेत्र के कॉलेजों को कवर करता था, जिसमें पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश शामिल थे।
1966 में पंजाब का पुनर्गठन हुआ और पंजाब को दो हिस्सों—पंजाब और हरियाणा—में बांटा गया। संसद से पारित पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत पंजाब विश्वविद्यालय को एक अंतर-राज्यीय निगमित निकाय बना दिया गया। इसी कारण से इसकी सभी बड़ी व्यवस्थाएं और निर्णय केंद्रीय गृह मंत्रालय के नियंत्रण में आते हैं।
