नाथूसरी चौपटा क्षेत्र की सड़कों पर हर दिन लाखों लोग अपनी मंजिल की ओर भागते हैं, लेकिन बुधवार का दिन एक ऐसी घटना का गवाह बना जिसने एक बच्चे की जिंदगी की दिशा ही बदल दी। यहाँ एक समाजसेवी की मानवता और सूझबूझ ने एक बाल मजदूर को भीख मांगने वाले हाथों में किताबें और कलम थमा दी।
बच्चे का बढ़ाया हाथ बना मोड़
जानकारी के अनुसार, बुधवार को समाजसेवी रघुबीर कड़वासरा अपने प्रतिष्ठान पर बैठे थे, तभी वहाँ 12 साल का एक बच्चा भीख मांगने पहुँचा। जैसे ही बच्चे ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, रघुबीर के मन में एक ही विचार कौंधा – “इस उम्र में इस बच्चे को स्कूल में होना चाहिए, यह भीख क्यों मांग रहा है?”
भूख मिटाई, फिर जिम्मेदारी संभाली
रघुबीर ने सबसे पहले बच्चे की भूख मिटाई। उसे चाय पिलाई और साथ बैठकर खाना खिलाया। इसके बाद, वह बच्चे को उसके माता-पिता – शनि और उसकी माँ – के पास ले गए। वहाँ उन्होंने माता-पिता को समझाया कि बच्चे से भीख मंगवाना एक कानूनी अपराध है और इस उम्र में बच्चे का पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।
बातचीत के दौरान पता चला कि बच्चे की बहन भी स्कूल नहीं जाती। यह सुनकर रघुबीर ने तुरंत एक नेक पहल की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा, “इन दोनों बच्चों की पूरी पढ़ाई का खर्चा, चाहे जितना भी हो, मैं स्वयं वहन करूंगा।”
नई वर्दी, किताबें और स्कूल में दाखिला
इसके बाद का दृश्य किसी सुखद सपने जैसा था। रघुबीर कड़वासरा दोनों भाई-बहन को बाजार ले गए और उन्हें नई स्कूल यूनिफॉर्म, कॉपियाँ और किताबें दिलवाईं। फिर वह उन्हें सीधे स्कूल ले गए।
शिक्षक ने दिया भरपूर सहयोग
स्कूल पहुँचने पर शिक्षक हरपाल सिंह ने बच्चों का तुरंत दाखिला करवाने में सहयोग दिया। शिक्षक हरपाल सिंह ने कहा, “पढ़ने का हर बच्चे को अधिकार है। हम इन्हें नियमित रूप से पढ़ाएंगे।” इस पर बच्चों के माता-पिता ने भी यह वादा किया कि अब वे अपने बच्चों को रोजाना स्कूल भेजेंगे।
यह घटना समाज में व्याप्त बाल श्रम और शिक्षा के अधिकार के प्रति जागरूकता का एक जीवंत उदाहरण बन गई है। रघुबीर कड़वासरा के इस नेक कार्य ने न सिर्फ दो बच्चों का भविष्य संवारा है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि थोड़ी सी सहानुभूति और पहल किसी की जिंदगी बदल सकती है।
