Haryana के फरीदाबाद जिले के मुस्लिम बहुल गाँव धौज में स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी अपने 76 एकड़ के विशाल परिसर के कारण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही है। यह गाँव नूह जिले की सीमा के पास स्थित है, जो आतंकवाद और साइबर अपराध के मामलों के लिए पहले भी चर्चा में रहा है। अल फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में हुई थी। 2013 में इसे NAAC द्वारा ‘A’ श्रेणी की मान्यता मिली। 2014 में हरियाणा सरकार ने इसे निजी विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता दी। विश्वविद्यालय ने सरकार को आश्वासन दिया था कि यह उच्च शिक्षा को बढ़ावा देगा और गरीब छात्रों को सस्ती शिक्षा प्रदान करेगा। हालांकि, हाल के घटनाक्रमों में यह विश्वविद्यालय आतंकवाद से जुड़े मामलों में सामने आया है, जिससे इसके शैक्षणिक और सामाजिक विश्वास पर सवाल उठे हैं।
शैक्षणिक पाठ्यक्रम और संरचना
अल फलाह यूनिवर्सिटी के भीतर तीन मुख्य कॉलेज हैं – अल फलाह स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, ब्राउन हिल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, और अल फलाह स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग। यहाँ डिप्लोमा, स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। 2019 में एमबीबीएस कोर्स शुरू हुआ, जिसमें 40 प्रतिशत डॉक्टर कश्मीर से हैं। मेडिकल कॉलेज में कुल 200 एमबीबीएस सीटें और 38 एमडी सीटें हैं। कुल शुल्क लगभग 80 लाख रुपये तक पहुँचता है। विश्वविद्यालय अल फ़लाह चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित है, जिसके अध्यक्ष जावेद अहमद सिद्दीकी, उपाध्यक्ष मुफ्ती अब्दुल्ला कासिमी, और सचिव मोहम्मद वाजिद हैं। वर्तमान कुलपति डॉ. भूपिंदर कौर आनंद हैं।
सुरक्षा और कानूनी विवाद
हाल ही में दिल्ली के लाल किला के पास हुए विस्फोट के सिलसिले में विश्वविद्यालय के आठ लोग, जिनमें तीन डॉक्टर भी शामिल हैं, को गिरफ्तार किया गया। इस मामले में जैश-ए-मोहम्मद और अंसार ग़ज़वात-उल-हिंद से जुड़े आतंकवादी मॉड्यूल का खुलासा हुआ, जो जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैला था। विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति जवाद अहमद सिद्दीकी पहले तिहाड़ जेल में तीन साल बिताने वाले एक घोटाले के मामले में भी जुड़े रहे। इन घटनाओं ने विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता और सुरक्षा मानकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
समाज और शिक्षा पर प्रभाव
अल फलाह यूनिवर्सिटी का उद्देश्य मुस्लिम अल्पसंख्यक छात्रों के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया का विकल्प प्रदान करना था। विश्वविद्यालय ने 25 प्रतिशत सीटें हरियाणा के छात्रों के लिए और 10 प्रतिशत अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित की हैं। हालांकि, हाल के घटनाक्रमों ने यह दिखाया कि शिक्षा के उद्देश्य के बजाय यहाँ आतंकवाद और कट्टरपंथी गतिविधियों की आशंका ने प्रमुखता पाई। विश्वविद्यालय की शैक्षणिक उपलब्धियाँ और मेडिकल कोर्स की गुणवत्ता इसके व्यापक योगदान को दिखाती हैं, लेकिन सुरक्षा और कानूनी विवाद इसकी छवि पर स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं।
