मोतिहारी : बिहार के मोतिहारी जिले के आदापुर प्रखंड स्थित टिकुलिया गांव में ब्राह्मण पुजारियों के प्रवेश और पूजा-पाठ पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाया गया है। गांव की गलियों, बिजली के खंभों और घरों की दीवारों पर ऐसे संदेश साफ देखे जा सकते हैं, जिनमें लिखा है — “इस गांव में ब्राह्मण पुजारियों का पूजा-पाठ कराना मना है।“
विरोध की वजह: इटावा की घटना से उपजा आक्रोश
यह कदम उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथित रूप से एक ओबीसी (यादव) कथावाचक के साथ हुए अभद्र व्यवहार के विरोध में उठाया गया है। टिकुलिया गांव के लोगों का कहना है कि वे ऐसे ब्राह्मणों का विरोध कर रहे हैं जिन्हें न वेदों का ज्ञान है और जो मांस-मदिरा जैसे व्यवहार में लिप्त रहते हैं।
“जाति नहीं, ज्ञान जरूरी”
ग्रामीणों ने कहा, “हम किसी जाति विशेष का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि ऐसे लोगों का विरोध कर रहे हैं जो ब्राह्मण होते हुए भी वेद-शास्त्र नहीं जानते और अधार्मिक जीवन जीते हैं। हमें पूजा-पाठ ऐसे ही लोगों से नहीं कराना।”
बोर्ड और पोस्टर से विरोध
गांव के मुख्य प्रवेश द्वार पर बड़े-बड़े अक्षरों में संदेश लिखे गए हैं
बिजली के खंभों और कुछ घरों की दीवारों पर भी “ब्राह्मण पुजारियों के प्रवेश पर रोक” के संदेश चस्पा किए गए हैं
कई ग्रामीणों ने अपने घरों के बाहर निजी बोर्ड भी टांग दिए हैं
गांव की सामाजिक स्थिति
टिकुलिया गांव ओबीसी और ईबीसी बहुल है। यहां ब्राह्मण आबादी नहीं के बराबर है, लेकिन आसपास के गांवों में ब्राह्मण पुजारियों की मौजूदगी है, जो आमतौर पर पूजा-पाठ के लिए आते थे। मगर इस निर्णय के बाद से अब उनका आना बंद हो गया है।
ग्रामीणों की स्पष्टता
ग्रामीणों ने साफ कहा है कि उनका विरोध केवल उन ब्राह्मणों से है, जो वेद-शास्त्र का ज्ञान नहीं रखते। यदि किसी अन्य जाति का व्यक्ति वेद का ज्ञाता हो, तो वे उससे पूजा-पाठ करवाने को तैयार हैं।
टिकुलिया गांव का यह कदम सामाजिक चेतना और परंपराओं को लेकर बढ़ती जागरूकता का प्रतीक माना जा रहा है। जहां एक ओर यह जातिगत भेदभाव के विरुद्ध खड़ा होता है, वहीं यह यह भी दर्शाता है कि धार्मिक कार्यों में केवल जाति नहीं, बल्कि योग्यता और आचरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।