नई दिल्ली. टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले जेवलिन थ्रोअर सुमित अंतिल ने बैंगलुरु के कांतीर्वा स्टेडियम में चल रही चौथी इंडियन ओपन नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. सुमित ने अपना ही 68.55 मीटर का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 68.62 मीटर दूर भाला फेंका और नया वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किया. 24 साल के इस पैरा एथलीट का एफ-64 कैटेगरी में 68.55 मीटर का पिछला वर्ल्ड रिकॉर्ड, पिछले साल टोक्यो पैरालंपिक में बना था. तब उन्होंने अपने 6 प्रयासों के दौरान तीन बार विश्व रिकॉर्ड भी तोड़ा था.
जब उन्होंने बेंगलुरु में फिर से वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ा, तो अंतिल, जिनका बायां पैर 7 साल पहले एक हादसे के बाद कट गया था ने राहत की सांस ली. हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले इस 24 साल के पैरा एथलीट ने कहा, ‘मेरे लिए, कुछ सेंटीमीटर की दूरी तय करना भी बड़ी सफलता है.’ इसकी वाजिब वजह भी है. नीरज चोपड़ा और वर्ल्ड चैम्पियन एंडरसन पीटर्स जैसे जेवलिन थ्रोअर, जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं. वो थ्रो फेंकने से पहले अपने शरीर के ऊपरी हिस्से में ऊर्जा स्थानांतरित करने के लिए बाएं पैर का इस्तेमाल करते हैं. भाला फेंक में सफल थ्रो का यह अहम हिस्सा होता है. लेकिन, अंतिल के लिए थ्रो करना चुनौतीपूर्ण है.
कृत्रिम पैर के साथ ताकत पैदा करना बड़ी चुनौती: अंतिल
सुमित प्रोसथेटिक लिंब (कृत्रिम पैर) के सहारे थ्रो करते वक्त लैंड करते हैं. इस कृत्रिम पैर में एक खास किस्म का स्टम्प और सॉकेट लगा होता है. कई बार गर्मी और कोरोशन यानी घृषण के कारण उनके पैर से खून बहने लगता है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक पैरा जेवलिन थ्रोअर के लिए चुनौती कितनी बड़ी है. उसमें अगर कोई खिलाड़ी साल में 4 बार विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहा है, तो उसका कद कितना बड़ा होगा.
अंतिल ने बैंगलुरु में विश्व रिकॉर्ड तोड़ने के बाद इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘एक हाथ जमीन पर रखें और अपने शरीर को संतुलित करने की कोशिश करें. अब अपने हाथ में एक कलम पकड़ें, उस हाथ को जमीन पर रखें और फिर से संतुलन बनाने की कोशिश करें. शारीरिक रूप से सक्षम थ्रोअर और मेरे जैसे पैरा एथलीट में यही अंतर है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे लिए एड़ी पर संतुलन बनाना बहुत मुश्किल होता है. कृत्रिम पैर में, केवल एड़ी का पिछला भाग ही जमीन को छूता है और जब थ्रो करने के आखिरी हिस्से में आपको अपना पैर ब्लॉक करना होता है तो पंजा जमीन पर पूरी तरह नहीं आता है. कृत्रिम पैर में मांसपेशियां नहीं हैं, इसलिए यह बड़ी चुनौती है. आप थ्रो के लिए जो ताकत पैदा करते हैं, वो खत्म हो जाती है. अगर थ्रो के वक्त आपका शरीर ही जमीन के संपर्क में पूरी तरह नहीं आएगा, तो ताकत कहां से पैदा होगी.’
अंतिल ने कहा, ‘मेरे लिए ट्रेनिंग और थ्रोइंग की प्रैक्टिस करना तकलीफदेह रहता है. यह ऐसा है कि जैसा कि आपके कृत्रिम पैर में किसी ने छुरा घोंप दिया हो. ट्रेनिंग के दौरान घर्षण के कारण बड़ी परेशानी होती है, क्योंकि कृत्रिम पैर में एक सिलिकॉन लाइनर होता है, सॉकेट लगे होते हैं, जो पैर को जोड़ते हैं. ऐसे में जब पसीना आता है तो लाइनर के आस-पास की त्वचा खुरदुरी हो जाती है और कट जाती है, इससे खून बहने लगता है. एक कट ठीक होता नहीं कि दूसरा लग जाता है. इसका कोई स्थायी समाधान नहीं है. मैं रात को सोने से पहले क्रीम लगाता हूं और यह उम्मीद करता हूं कि सुबह तक चोट ठीक हो जाएगी।
