दिल्ली : दक्षिणी दिल्ली के साकेत इलाके में अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के किले राय पितौरा से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक “खिड़की मस्जिद” को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। 11वीं सदी से इस क्षेत्र में बसे खिड़की गांव के स्थानीय निवासियों ने इस इमारत का नाम बदलने की मांग की है। खिड़की गांव में ज्यादातर आबादी चौहान वंश की है, उनका दावा है कि यह इमारत कभी मस्जिद थी ही नहीं, बल्कि यह पृथ्वीराज चौहान की सेना के लिए बनाए गए एक आरामगृह (विश्राम स्थल) के रूप में उपयोग में लाई जाती थी।
ग्रामीणों का कहना है कि इस ढांचे को “मस्जिद” कहे जाने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। उनके मुताबिक खिड़की गांव का इतिहास इस इमारत से जुड़ा है और उनके पूर्वजों से सुनी-सुनाई कहानियों और परंपराओं के अनुसार यह संरचना मुस्लिम शासन से बहुत पहले की है।
स्थानीय निवासी और केंद्रीय विद्यालय से रिटायर्ड टीचर देवेंदर पाल सिंह चौहान ने कहा, “हमने बचपन से बुजुर्गों से यही सुना है कि यह इमारत हिन्दू शासकों के ज़माने की है। बाद में नाम ‘मस्जिद’ रख दिया गया, जबकि इसका वास्तुशिल्प और स्थानिक संदर्भ किसी मस्जिद से मेल नहीं खाता।”
खिड़की गांव के ही निवासी हरिंदर चौहान ने कहा, “हमारे पूर्वजों से हमने इस किले के बारे में सैकड़ो वर्षों से यही सुना है कि ये कभी मस्जिद थी ही नहीं, कांग्रेस शासन काल में कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतों के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई.”
कुछ इतिहासकारों का भी मानना है कि यह संभव है कि कई ऐतिहासिक इमारतों को कालांतर में दूसरे नाम या उद्देश्य से पहचाना जाने लगा हो। हालांकि पुरातत्व विभाग की आधिकारिक सूची में इसे “खिड़की मस्जिद” कहा गया है, और इसे तुगलककालीन स्थापत्य का हिस्सा माना जाता है, जो 14वीं सदी में बना था।
नाम बदलने की माँग पर प्रशासन चुप
हाल ही में खिड़की गांव में 7 जून को अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की 860वीं जयंती पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में सैकड़ों की तादाद में क्षत्रीय समाज के लोग शामिल हुए थे और खिड़की मस्जिद का नाम बदलकर पृथ्वी विश्रामगृह रखने की मांग की थी। स्थानीय लोगों ने इस मुद्दे को एलजी और पुरातत्व विभाग तक पहुंचाने की बात कही है। हालांकि अभी तक प्रशासन की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
ये विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब देशभर में कई ऐतिहासिक स्थलों और उनके नामों को लेकर बहस जारी है। कुछ लोग इसे सांस्कृतिक पुनर्जागरण मानते हैं, तो कुछ इसे इतिहास से छेड़छाड़ कहकर विरोध भी करते हैं।
अब आगे क्या?
यदि ग्रामीणों की मांग जोर पकड़ती है और सरकार या ASI इस पर ध्यान देती है, तो इस मसले पर ऐतिहासिक दस्तावेजों और प्रमाणों की गहरी जांच पड़ताल जरूरी होगी। इससे पहले भी कई जगहों पर नाम बदलने के लिए ऐसे ही तर्क सामने आते रहे हैं।