Pahalgam Terror Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और अधिक भड़का दिया है। इस हमले में 27 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जबकि पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की संलिप्तता के पुख्ता सबूत मिलने के बाद भारत की प्रतिक्रिया बेहद सख्त रही।
बिलावल भुट्टो का उकसाने वाला बयान
हमले के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के अध्यक्ष और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने एक सार्वजनिक सभा में भड़काऊ बयान दिया। उन्होंने भारत को सीधी धमकी देते हुए कहा:
“मैं सिंधु नदी के किनारे खड़ा होकर भारत को बताना चाहता हूं कि सिंधु हमारी है और यह हमारी ही रहेगी। या तो इसमें हमारा पानी बहेगा या उनका खून।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब पूरा भारत पहलगाम हमले की पीड़ा और गुस्से से उबरा नहीं है। भारत ने इस टिप्पणी को सीधी हिंसा की धमकी और कूटनीतिक मर्यादाओं का उल्लंघन बताया है।
भारत ने सिंधु जल संधि पर लगाई रोक
बिलावल के बयान और लगातार आतंकी गतिविधियों के मद्देनज़र भारत सरकार ने 1960 की सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर पुनर्विचार की प्रक्रिया तेज़ कर दी है। सूत्रों के मुताबिक, भारत अब विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी इस ऐतिहासिक संधि को आंशिक रूप से निलंबितकरने के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह पहली बार है जब भारत ने इस संधि को लेकर इतनी सख्त रणनीति अपनाई है। इस संधि ने अब तक भारत-पाक युद्धों के बावजूद अपने नियमों को कायम रखा था।
पाकिस्तान की दोहरी नीति बेनकाब
बिलावल भुट्टो ने आगे कहा कि “भारत की जनसंख्या भले ही ज़्यादा हो, लेकिन पाकिस्तान के लोग बहादुर हैं। हम सीमाओं पर और देश के अंदर भी लड़ेंगे।” इस बयान से साफ है कि पाकिस्तान की राजनीति आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के बजाय राष्ट्रवादी उन्माद और भड़काऊ भाषणों के सहारे जनता को गुमराह कर रही है।
भारत का कूटनीतिक हमला
भारत सरकार ने सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित न रहकर ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द किए जा रहे हैं।
सिंधु जल संधि को रोकने की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं।
भारत ने यह मामला अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की तैयारी भी कर ली है।
पहल्गाम हमले ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि पाकिस्तान की धरती से संचालित आतंकवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। भारत अब सिर्फ बचाव नहीं बल्कि प्रत्युत्तर की नीति पर काम कर रहा है। सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार उसी रणनीति का हिस्सा है।